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Beskrivelse
शुभाशंसा ----------- पत्रकारिता लेखन को त्वरित साहित्य कहते हैं और समाचार पत्रों में इस समाचार को पत्रकारिता की भाषा में स्टोरी कहते हैं और यह स्टोरी शार्ट तो होती ही है। सो सिद्ध पत्रकार श्री श्याम किशोर पाठक का लघु कथा लेखन चौंकाती नहीं है, चौंकाती है उनकी वह सिद्ध कलम जो इतनी मर्मस्पर्शी कथाएं उकेरती है। मैं श्री श्याम किशोर पाठक के लघुकथा संग्रह 'कठजीव' के संदर्भ में यह बातें कर रहा हूं। आद्योपांत यह पूरी पुस्तक मैंने शुकन्याय से पढ़ी, किंतु प्रारंभ की बीस-पच्चीस लघुकथाएं तो मैं प्रायः एक सांस में पढ़ गया। संकलन की सारी कथाएं सामाजिक विद्रूप को रेखांकित करती हैं और कथित सभ्य समाज के छद्म का पोल खोलती हैं। जिस लघुकथा के शीर्षक को पुस्तक की संज्ञा मिली है, उस कठजीव में स्टेशन के आसपास और रेलवे स्टेशन पर ठंढ में ठिठुरती हुई दातुन बेचती बेसहारा अल्पवयस्का बच्ची की कहानी है। वह दो रुपये में एक मुट्ठा दातुन दे रही है और एक सज्जन उससे दातुन लेकर मोलभाव करते रहते हैं और ट्रेन आने पर उसे बिना पैसे दिए ट्रेन पर सवार हो जाते हैं। ट्रेन चल पड़ती है। ऐसे ही तरह-तरह के सामाजिक और पारिवारिक छद्मों को ये लघुकथाएं उजागर करती हैं। कठिनाइयां दो ह