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Diwaswapna

- Gijubhai: Diwaswapna

Bog
  • Format
  • Bog, paperback
  • Hindi
  • 122 sider

Beskrivelse

इसी बीच प्रधानाध्यापक एकाएक आए और मुझे टोका, ''देखिए, यहाँ पास में कोई खेल नहीं खेला जा सकता। चाहो, तो दूर उस मैदान में चले जाइए। यहाँ दूसरों को तकलीफ होती है।'' मैं लड़कों को लेकर मैदान में पहुँचा। लड़के तो बे-लगाम घोड़ों की तरह उछल-कूद मचा रहे थे। ''खेल! खेल! हाँ, भैया खेल!'' मैंने कहा, ''कौन सा खेल खेलोगे?'' एक बोला, ''खो-खो।'' दूसरा बोला, ''नहीं, कबड्डी।'' तीसरा कहने लगा, ''नहीं, शेर और पिंजड़े का खेल।'' चौथा बोला, ''तो हम नहीं खेलते।'' पाँचवाँ बोला, ''रहने दो इसे, हम तो खेलेंगे।'' मैंने लड़कों की ये बिगड़ी आदतें देखीं। मैं बोला, ''देखो भई, हम तो खेलने आए हैं। 'नहीं' और 'हाँ ' और 'नहीं खेलते, ' और 'खेलते हैं, ' करना हो तो चलो, वापस कक्षा में चलें।'' लड़के बोले, ''नहीं जी, हम तो खेलना चाहते हैं।'' -इसी पुस्तक से बाल-मनोविज्ञान और शैक्षिक विचारों को कथा शैली में प्रस्तुत करनेवाले अप्रतिम लेखक गिजुभाई के अध्यापकीय जीवन के अनुभव का सार है यह-'दिवास्वप्न'।

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Detaljer
  • SprogHindi
  • Sidetal122
  • Udgivelsesdato02-01-2021
  • ISBN139789352665082
  • Forlag PRABHAT PRAKASHAN PVT LTD
  • FormatPaperback
  • Udgave0
Størrelse og vægt
  • Vægt165 g
  • Dybde0,6 cm
  • coffee cup img
    10 cm
    book img
    14 cm
    21,6 cm

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