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Devnagari Jagat Ki Drishya Sanskriti

Bog
  • Format
  • Bog, hardback
  • Hindi
  • 208 sider

Beskrivelse

उत्तर भारतीय समाज और इसकी जन-संस्कृति के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित प्रस्तुत निबन्धों के फलक को जोडऩे का तार यदि कुछ है तो वह है इस इलाक़े की आम फ़हम संस्कृति। मेरा मानना है कि जिन शर्तों पर अधिकांश विद्वान् 'जन' और 'लोक' संस्कृति में फ़र्क़ करते रहे हैं, जिस प्रकार लोक संस्कृति को शुद्धतावादी नज़रिये से देखा जाता रहा है वह आज के समय में अपने आप में भ्रामक और आरोपित होगा। लोक और जन आज के परिप्रेक्ष्य में एक-दूसरे से घुले-मिले हैं। तमाम आक्रामकता और समकालीन संश्लिष्टता के बावजूद लोक की अपनी थाती है और इसका पसारा है। इसे किसी भी शर्त पर नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। मेरा सीमित उद्देश्य पदों के शुद्धतावादी आग्रहों पर प्रश्नचिह्न लगाने का है। मेरे लिए लोक और जन में अन्तर कर पाना न नहीं है और यदा-कदा सहूलियत के लिए मैंने यद्यपि जन-संस्कृति का प्रयोग किया है लेकिन मेरा आशय दरअसल दैनिक जीवन में रची-बसी कभी शोर-शराबे के साथ कभी चुपचाप सँवरती उन अनेक प्रकार की प्रक्रियाओं से है जिन्हें किसी एक ठौर पर रखकर व्याख्यायित करना मुश्किल होता है। भाषा, साहित्य, शहरी अनुभवों और इतिहास की भागीदारी लिये हुए इन प्रक्रियाओं के मिले-जुले तार, हमे&

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Detaljer
  • SprogHindi
  • Sidetal208
  • Udgivelsesdato01-01-2018
  • ISBN139789388183918
  • Forlag Rajkamal Prakashan
  • FormatHardback
  • Udgave0
Størrelse og vægt
  • Vægt412 g
  • Dybde1,6 cm
  • coffee cup img
    10 cm
    book img
    13,9 cm
    21,5 cm

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    Machine Name: SAXO082