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Barish ki Boonden (बारिश की बूँदें)

Bog
  • Format
  • Bog, paperback
  • Hindi
  • 110 sider

Beskrivelse

भाव और छंद की संगीतमय जुगलबंदी 'बारिश की बूंदें' ------------------------------------------------------------------- जिस उम्र में लोग कविता की संकरी, टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी नुमा, सपाट, उतार-चढ़ाव की गलियों में चलने की कोशिश करते हैं। बारम्बार गिरते हैं, सम्भलते हैं, उठते हैं, फिर थोड़ा चलते हैं, फिर गिर जाते हैं, उस वय में पूजा दुबे का काव्य संग्रह 'बारिश की बूंदें' मेरे लिए आश्चर्य मिश्रित हर्ष प्रदायक है। काव्य संग्रह में कुल ४५ छंदबद्ध, गेय गीत, ३८ दोहे १२ गजलें, कुल ९५ रचनाओं का समावेश है, जो कवियित्री के बहुआयामी सृजन के सबूत हैं। इंद्रधनुष के सात रंग होते हैं, यहाँ गीतों के विविध रंग हैं। संग्रह का पहला गीत झकझोर देता है, ह्रदय के तार-तार झनझना उठते हैं। 'ऐ काल रात्रि! दृग खोल सखी, स्वप्नों की नब्ज टटोल सखी। कालरात्रि रूप में कवियित्री किसे देखती है? कौन है काल रात्रि? मेरी समझ तो यही कहती है कि माँ शारदा का आह्वान है। विकल मन से वह माँ को जागने का अनुरोध करती है। यह विकल-मन के पुकार की पराकाष्ठा है। एक गीत के भाव, उच्च दार्शनिक सोच की झाँकी प्रस्तुत करते हैं---'किसे पता है कितने दिन का, किसका कितना दाना-पानी।' नेचर का आलम्बन और उद्दीपन प्रभावित और उदीप्त करता है। आशा-निराशा, मिलन, संयोग-वियोग के सारे भाव &

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Detaljer
  • SprogHindi
  • Sidetal110
  • Udgivelsesdato01-01-2021
  • ISBN139789390889532
  • Forlag Prakhar Goonj
  • FormatPaperback
  • Udgave0
Størrelse og vægt
  • Vægt136 g
  • Dybde0,5 cm
  • coffee cup img
    10 cm
    book img
    13,9 cm
    21,5 cm

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