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Arunodaya

- Bhawani, S: Arunodaya

Bog
  • Format
  • Bog, paperback
  • Hindi
  • 182 sider

Beskrivelse

किसी भी रचनाकार के अंतर्मन में पारिवारिक, सामाजिक एवं व्यक्तिगत कुछ ऐसे अनुभवों का स्फुरण होता है जो अभिव्यक्ति के लिए एक सही दिशा की तलाश करते हैं।इन्हीं अनुभूतियों से कोई भी रचना विशिष्ट हो पाती है और आत्मसंतुष्टि को प्राप्त करती है। सकारात्मक लेखन के साथ आत्मपरक लेखन भी जब समाहित होकर अग्रसर होता है तो एक भाव प्रधान तीव्रता रचना को गति प्रदत्त करती है। रूढ़ियों एवं शोषण के निवारण हेतु विद्रोह एवं संघर्ष की परिकल्पना मानवीयता के लिए अत्यंत आवश्यक हो जाती है। सामान्यतः स्त्री के व्यक्तित्व को स्वतंत्र स्वीकार करने में आज भी समाज नाक मुँह सिकोड़ता रहता है।वर्तमान भारत में आज भी स्त्रियों का पूर्ण रूप में स्वतंत्र व्यक्तित्व स्थापित नहीं हो पाया है। स्त्रियाँ स्वयं पीड़ा एवं दर्द में रहकर भी सबको दर्द से मुक्त करने का प्रयास करती रहती हैं। स्त्री स्वयं सृजन करती है और उससे ही सृष्टि निर्माण होता है। अतः स्वयं की रचनाओं के प्रति स्त्री का एक विशेष समर्पण, ईमानदारी, लयबद्धता, सकारात्मकता एवं रागात्मक लगाव होता है।

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Detaljer
Størrelse og vægt
  • Vægt237 g
  • Dybde1 cm
  • coffee cup img
    10 cm
    book img
    14 cm
    21,6 cm

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    Machine Name: SAXO083