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Beskrivelse
सोशल मीडिया का दौर चरम पर है। जो फेसबुक, ट्विटर और ह्वाट्स एप कभी मित्रता और नेटवर्किंग बढ़ाने के साधन समझे जाते थे, वे अब राजनीतिक विचारधारा का टूल बन गए हैं। जिसका सबसे बुरा शिकार हो रहा है इतिहास, जिसकी मर्जी में जो आ रहा है, अपने राजनीतिक फायदे के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़कर उसे गलत मंशा से सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर शेयर कर रहा है। ऐसे में खासी दिक्कत उस आम आदमी के लिए हो गई है, जिसने यह इतिहास कभी किसी किताब में पढ़ा नहीं, लेकिन प्रतिष्ठित लोग उसे शेयर करें तो उसे सच मान लेता है, वहीं कोई दूसरा प्रतिष्ठित व्यक्ति उसे गलत साबित करता है तो ऐसे में सच क्या है? जरूरी था कि इस दिशा में प्रयास हों और ऐतिहासिक दावों की सच्चाई बताई जा सके। आमतौर पर टीवी के वायरल सच बताने वाले कार्यक्रमों में किसी-न-किसी इतिहासकार के बयान से ही उसे सच या झूठ मान लिया जाता है, जबकि हो सकता है कि वह इतिहासकार खुद किसी विचारधारा का पोषक हो। यह किताब सही संदभों के साथ ऐतिहासिक विवादों की तह में जाकर सच जानने का एक प्रयास है, भले ही छोटा सा है।